नई दिल्ली: उत्तराखंड का चर्चित और संवेदनशील अंकिता भंडारी कांड से संबंधित अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है। इसमें उत्तराखंड में पटवारी सिस्टम खत्म करने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने याचिकाकर्ता से कहा कि वो मंगलवार को इस मामले को इसी कोर्ट के सामने संबंधित सारे दस्तावेजों के साथ मेंशन करे. हस्तक्षेप की अर्जी लगाते हुए देहरादून स्थित एक पत्रकार ने अपनी याचिका में कहा है कि पूरे कांड के लिए पटवारी सिस्टम जिम्मेदार है। क्योंकि इस सिस्टम के जरिए शिकायतें दर्ज होने और फिर उस पर कार्रवाई में काफी समय लग जाता है।
नैनीताल में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस सिस्टम को 6 महीने में खत्म करने का आदेश दिया था। उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका 2019 में दाखिल की थी। लेकिन अब तक वो सुनवाई के लिए सूचीबद्ध ही नहीं की गई है। उसी याचिका के साथ इस नई अर्जी को जोड़ने की मांग करते हुए कहा गया है कि अंकिता के पिता अपनी शिकायत दर्ज कराने पुलिस के पास गए थे, लेकिन उनको पटवारी के पास शिकायत की तस्दीक यानी संस्तुति के लिए भेज दिया गया। इसके बाद सरकारी महकमों के बीच का खेल शुरू हुआ।
अंकिता के परिजन शिकायत दर्ज कराने को लेकर पुलिस और पटवारी के बीच दौड़ते रहे। जब शिकायत ही दर्ज नहीं हुई तो जांच कैसे शुरू होती। याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य में सदियों पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था प्रचलित है। कानूनगो, लेखपाल और पटवारी जैसे राजस्व अधिकारियों को अपराध दर्ज करने और जांच करने के लिए पुलिस अधिकारी की शक्ति और कार्य दिया गया है।
उत्तराखंड राज्य को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसमें तीन अलग-अलग अधिनियम लागू होते हैं, जो राजस्व अधिकारियों को गिरफ्तार करने और जांच करने आदि की पुलिस की शक्तियां देते हैं।
ये तीन क्षेत्र हैं:-
(ए) कुमाऊं और गढ़वाल डिवीजन की पहाड़ी पट्टी जो कभी ब्रिटिश भारत का हिस्सा थे।
(बी) टिहरी और उत्तरकाशी जिले की पहाड़ी पट्टी।
(सी) देहरादून जिले का जौनसार-बावर क्षेत्र
कहा गया है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट, 2021 में उत्तराखंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध और अन्य अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले 2541 थे, जो 2020 में बढ़कर 2846 और 2021 में बढ़कर 3431 हो गए। साथ ही, 2019 में हत्या के मामलों की संख्या 199 थी, जो वर्ष 2020 में 160 हो गई और आगे 2021 में बढ़कर 208 हो गई। इसलिए अपराध की संख्या से यह स्पष्ट है कि उत्तराखंड राज्य में गंभीर अपराध में वृद्धि हुई है।
पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार और तहसीलदार जैसे राजस्व अधिकारियों को बलात्कार, हत्या, डकैती आदि सहित गंभीर अपराधों की जांच के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। उनका प्राथमिक कर्तव्य राजस्व मामलों में कर्तव्यों का निर्वहन करना है। वे पहले से ही राज्य के राजस्व शुल्क और करों के संग्रह के बोझ तले दबे हैं। उन्हें अपराध स्थल, जांच, फोरेंसिक, पूछताछ, पहचान, यौन और गंभीर अपराधों को संभालने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। यह केवल नियमित पुलिस वाले प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों द्वारा ही किया जा सकता है, जिन्हें समय-समय पर कानूनी, वैज्ञानिक और जांच प्रशिक्षण दिया जाता है।