कालाढूंगी/कुमाऊँ
सातू-आठू में सप्तमी के दिन मां गौरा व अष्टमी को भगवान शिव की मूर्ति बनाई जाती है. मूर्ति बनाने के लिए मक्का, तिल, बाजरा आदि के पौधे का प्रयोग होता है, जिन्हें सुंदर वस्त्र पहनाकर पूजा की जाती है. वहीं झोड़ा-चाचरी गाते हुए गौरा-महेश के प्रतीकों को खूब नचाया जाता है. महिलाएं दोनों दिन उपवास रखती हैं ।
उत्तराखंड की भूमि अपने विशेष लोकपर्वों के लिए प्रसिद्ध है। इन्ही लोक पर्वों में से एक पर्व है सातू आठू लोक पर्व। भगवान के साथ मानवीय रिश्ते बनाकर उनकी पूजा अर्चना और उनके साथ आनंद मानाने का त्यौहार है। सातू आठू त्यौहार उत्तराखंड के पिथौरागढ़ बागेश्वर डीडीहाट व् कुमाऊँ के सीमांत क्षेत्र में मनाया जाने वाला यह त्यौहार प्रतिवर्ष भाद्रपद मास मैं मनाया जाता है।
उत्तराखंड के कालाढूंगी चकलुवा में जनपद पिथौरागढ़ मूल के निवासी जो अब चकलुवा में 4 से 5 पीढ़ियों से यहाँ बस गए है जो इस पर्व को बड़े धूमधाम के साथ मानते है।