प्रेरणादायक: डीजे -हॉप,डीजे वाले आधुनिक दौर में भी लोककला को सहेजने में जुटा युवा भास्कर भौर्याल।

कमल कवि काण्डपाल


बागेश्वर: जिले के ग्राम कुरोली रीमा पट्टी के भास्कर भौर्याल वर्तमान में अल्मोड़ा में रहकर मास्टर ऑफ फाइन आर्ट की पढ़ाई कर रहे हैं। जहां एक तरफ युवाओं का रूझान आधुनिक चटक संगीत के प्रति बढ़ रहा हैं दूसरी तरफ भास्कर लोककला लोकवाद्यों को सहजने का कार्य कर रहे हैं। भास्कर झोड़ा,चांचरी,छपेली,भगनौल,हुड़क्या बौल न केवल गाते हैं बल्कि इन सभी विधाओं की गहरी जानकारी भी रखते हैं। लोकवाद्यों में भास्कर अक्सर हुड़का और लुप्ति के कगार पर पहुंची बिणई का प्रयोग करते हैं और इन वाद्ययंत्रों के रखरखाव की भी जानकारी रखते हैं। भास्कर कुमाउनी कविताएं भी लिखते हैं और कुमाउनी भाषा के प्रचार प्रसार को समर्पित युवा हस्ताक्षर हैं। भास्कर भौर्याल कुमाऊं की तमाम विधाओं गाथाओं को राजकीय और राष्ट्रीय मंचों पर भी प्रस्तुत कर चुके हैं। हमारी टीम ने जब भास्कर से संपर्क किया उन्होंने बताया कि उनकी प्राथमिक शिक्षा नवोदय विद्यालय गंगोलीहाट से हुई बचपन से ही अपने घर से दूर वो रहते थे, कभी कभार ही घर आना होता था,इस बीच वो गांव घरों में होने वाली लोक सांस्कृतिक गतिविधियों पर गहनता से गौर करते थे,जिसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा ‌और उसके बाद कालेज की पढ़ाई के लिए भास्कर अल्मोड़ा चले आये अल्मोड़ा को कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है अल्मोड़ा में रहते हुए पठन पाठन के साथ साथ भास्कर लोकगीतों पर शोध कार्य और गायन के साथ साथ अपनी पढ़ाई भी कर रहे हैं। भास्कर फाइन आर्ट के छात्र हैं उनकी बनाई गई अनेकों पेंटिंगों में भी पहाड़ और यहां की लोक संस्कृति का प्रतिबिंब झलकता है। लोकपर्व रीती रिवाजों पर अक्सर उससे जुड़े सजीव चित्रण को बड़ी बारीकी से कैनवास पर उकेरते हैं‌।

रोपाई के दौरान हुड़क्या बौल लगाते हुए भास्कर


भास्कर इन दिनों अल्मोड़ा में हैं उन्होंने “आंखर” नाम से अपना यूट्यूब चैनल भी हाल ही में शुरू किया है जिसमें उनके दो हजार सब्सक्राइबर भी हैं। भास्कर सीमीत साधनों में भी हर सप्ताह एक विडियो अपने यूट्यूब चैनल पर डालते हैं।
जहां हमारे लोक के ऐसे चितेरे नव युवा लगातार संस्कृति विरासत को सहजने में लगे हैं और सरकार आये दिन विज्ञापनों के द्वारा लोककलाकारों को मान सम्मान देने और सहजने की बात तो करती है लेकिन कुछ ही समय बाद यह बातें दावे केवल विज्ञापनों तक ही सिमट कर रह जातें हैं। अगर सरकार प्रयास कर इन तमाम दावों को अमलीजामा पहनाने में सफल हो तो भास्कर जैसे युवाओं का रूझान इस ओर जरूर आकर्षित होगा। और लोक संस्कृति,लोक परम्परायें और लोकभाषाओं के अस्तित्व को भी युवा शक्ति के साथ मजबूती मिलेगी।

Himfla
Ad

Pahadi Bhula

Author has been into the media industry since 2012 and has been a supporter of free speech, in the world of digitization its really hard to find out fake news among the truth and we aim to bring the truth to the world.