प्रेरणादायक :पुराने लोकगीतों को नये आयामों में,नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं हल्द्वानी के करन जोशी।

कमल कवि काण्डपाल

पहाड़ के लोकगीतों केवल मनोरंजन का साधन भर नहीं अपितु पहाड़ की संस्कृति,रहन सहन,रीति रिवाजों से लेकर पहाड़ों की हर गतिविधि को जीवंत रूप में संजोए रखने के गीत हैं। जब उन लोकगीतों का निर्माण हुआ तब न आज के जैसे साधन थे और ना ही इतनी सुविधाएं, तमाम अभावों के बाद भी उन लोकगीतों में पहाड़ की आत्मा थी। अधिक आधुनिकता और तकनीकी की उहापोह में नई पीढ़ी का ध्यान लोकगीतों की तरफ आकर्षित करना बहुत चुनौतीपूर्ण था। ऐसे में उम्मीद की किरण बनकर आये शीशमहल हल्द्वानी निवासी करन जोशी ।
करन जोशी दिल्ली की किसी निजी कंपनी में कार्यरत थे, और उनको पहाड़ से बेहद लगाव रहा।करन को जब लगा कि आधुनिकता और तेजी से बढ़ते तकनीकी युग में कहीं लोकगीतों का वो स्वरूप कहीं पीछे न छूट जाए,करन दिल्ली से नौकरी छोड़कर हल्द्वानी वापस लौटै और लोकगीतों के प्रति कैसे नई पीढ़ी को आकर्षित किया जाय इस विचार करते हुए करन जोशी ने रचनात्मकता के साथ पुराने लोकगीतों को उसी लय में आधुनिक वाद्ययंत्रों से संजोकर अपने यूट्यूब चैनल Kedarnad पर अपलोड किया।धीरे धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और नई पीढ़ी ने इनके कार्य को खूब सराहा।करन जोशी के यूट्यूब चैनल Kedarnaad पर चार हजार से अधिक सब्सक्राइबर हैं।गायन के साथ साथ करन जोशी को गिटार,तबला एवं अन्य आधुनिक वाद्ययंत्रों को बजाने की भी गहन जानकारी है।जिसे वो अन्य लोगों को भी सिखाने का काम करते हैं।

चाहे गिर्दा का “एसा हो स्कूल हमारा” हो या “म्यर हिमाला” या फिर भानु राम सुकोटी का “न्यौला -न्यौला” हो या कबूतरी देवी ,हीरा सिंह राणा जी के लोकगीत हों,शेरदा अनपढ़ की कविता “खड़्यूड़ी को छै तू” जैसे लोकगीतों पर अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन करते हुए एक ऐसा नया आयाम दिया जो युवा पीढ़ी में खूब पसंद किया जा रहा है। और उन लोकगीतों के जरिए जो बात जो पीड़ लोकगायक बयां कर रहे थे उनकी आवाज नई पीढ़ी तक पहुंच रही है

करन के ऐसे भागीरथ प्रयासों से जहां लोकगीतों को नया आयाम मिला है वहीं दूसरी तरफ युवा पीढ़ी लोकगीतों की ओर आकर्षित हो रही है,जो कि अत्यन्त आवश्यक है।
टीम संगम न्यूज करन जोशी के प्रेरणादायक कार्यों की सराहना करते हुए उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

Himfla
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