उत्तराखंड: डबल इंजन भी नहीं संवार पा रहा पहाड़ों की स्वास्थ्य सुविधाएं, यहां गधेरे में हुआ प्रसव।

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बड़े बड़े मंचों से राज्य के मुख्यमंत्री हों या फिर दौरे पर पहुंचे देश के प्रधानमंत्री हों या फिर क्षेत्रीय विधायक से लेकर कैबिनेट मंत्री तक भाषण और विज्ञापनों में कसर नहीं छोड़ते और भोली भाली जनता को बहलाने सहलाने का हुनर तो कोई हमारे राज्य और देश के नेताओं से सीखे,ये सफेदपोश उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अपनी बातों से दिन में सपने दिखा देते हैं। लेकिन राज्य के हालात खास तौर पर दूरस्थ क्षेत्रों के आज भी सुख सुविधाओं की तलाश में दर दर भटकने को मजबूर हैं ताजा मामला चमोली जनपद के गांव पाणा का आया है यहां नंदी देवी पत्नी भरत सिंह को बीती रात प्रसव पीड़ा हुई। सुबह तक प्रसव नहीं होने पर ग्रामीण उसे डोली के सहारे पैदल गोपेश्वर लाने लगे। उन्हें वाहन पकड़ने के लिए गांव से करीब सात किमी दूर पगना तक पैदल आना पड़ता है।


डोली में लाते लाते अचानक किसी गधेरे के समीप गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा हुई और महिला ने अस्पताल आते समय गधेरे के समीप रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे दिया। महिला को ग्रामीण डोली के सहारे पैदल गोपेश्वर जिला चिकित्सालय लेकर आ रहे थे। ग्रामीणों ने बताया कि जच्चा-बच्चा दोनों ठीक हैं। उन्हें वापस घर ले गए हैं। जानकारी के अनुसार गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने के कारण गांव वालों को ऐसी समस्याओं से जूझना पड़ता है गांव पाणा की नंदी देवी पत्नी भरत सिंह को बीती रात प्रसव पीड़ा हुई। सुबह तक प्रसव नहीं होने पर ग्रामीण उसे डोली के सहारे पैदल गोपेश्वर लाने लगे। उन्हें वाहन पकड़ने के लिए गांव से करीब सात किमी दूर पगना तक पैदल आना पड़ता है। गांव से करीब तीन किमी चलने के बाद कुल गदेरे में महिला को प्रसव पीड़ा तेज हो गई। इसके बाद महिला को वहीं उतार दिया गया। उनके साथ आ रहीं आशा और अन्य महिलाओं ने वहीं पर प्रसव करा दिया। गनीमत रही कि प्रसव सुरक्षित हो गया।

गर्भवती महिला को प्रसव हेतू डोली से ले जाते पाणा के ग्रामीण।

लेकिन कहीं न कहीं आये दिन ऐसे मामले आज भी प्राथमिक सुविधाओं की मार झेल रहे पहाड़वासियों के ज़ख्मों पर बड़े बड़े मंचों से किये जाने वाले लच्छेदार भाषणों से मरहम न बल्कि नमक लगाने का काम करते हैं। और यह कोई नया मामला नहीं है पिछले मोटे आंकड़ें अगर देखे जाएं तो लगभग हर महीने बीस दिन में इस तरह के मामले देवभूमि उत्तराखंड के दूरस्थ पहाड़ी इलाकों से देखने को मिल जाते हैं लेकिन राज्य में बारी राज करने वाले राजनीतिक दलों ने और उनके नेताओं ने आजतक केवल भाषण ही दिए हैं।

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