कालाढूँगी में धूमधाम से मनाई गई तुलसी एकादशी, जिसे हरिशयनि या देवशयनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।

कालाढूँगी में धूमधाम से मनाई गई तुलसी एकादशी, जिसे हरिशयनि या देवशयनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।
इस एकादशी के दिन से चतुर्मास प्रारंभ होता है जिस दिन सभी सनातनी अपने अपने घरों में तुलसी जी का पौधा रोपड़ करते हैं।

देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ
आप सभी धर्म प्रेमियों को सादर प्रणाम आप सभी को अवगत कराना चाहूंगा कि दिनांक 10 जुलाई 2022 दिन रविवार को देव शयनी एकादशी का उपवास रखा जाएगा। देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास प्रारंभ। देव शयनी एकादशी पर रवि योग भी बन रहा है।
हिंदू धर्म में चातुरमास का विशेष महत्व है आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा में चले जाते हैं। 4 माह तक प्रकृति का संचालन भगवान भोलेनाथ करते हैं। चातुर्मास में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवप्रबोधनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। और सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारम्भ हो जाते है। देवशयनी एकादशी को तुलसी पौध रोपण भी किया जाता है। ( इस बार रविवार को एकादशी होने के कारण कई लोगों की मन में भ्रम की स्थिति है कि तुलसी रोपण होगा कि नहीं रविवार को तुलसी रोपण किया जाएगा। रविवार को केवल तुलसी के पत्ते तोड़ना व जल अर्पित करना वर्जित होता है धार्मिक मान्यतानुसार रविवार के दिन माता तुलसी भगवान विष्णु के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। तुलसी में जल चढ़ाने से माता तुलसी का उपवास खंडित हो जाता है। जिसके पीछे वैज्ञानिक कारण है यदि हम तुलसी का पत्ता तोड़ते हैं उसे खाने में प्रयोग करते हैं रविवार गरम वार होता है तुलसी की तासीर भी गर्म होने के कारण उस दिन तुलसी खाना वर्जित माना गया है अतः निसंकोच तुलसी रोपण करें) और देवी तुलसी की पूजा अर्चना की जाती है। तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का पाठ करें-:
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी,
आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।
देवी तुलसी को सुहाग का सामान अर्पित कर घी के दीपक जलाएं और चातुर्मास पूर्ण होने तक देवी तुलसी की प्रतिदिन आरती करें।

शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ 9 जुलाई सायंकाल 4:40 से 10 जुलाई दोपहर 2:15 तक।
व्रत पारण 11 जुलाई प्रातः 5:56 से 8:36 तक।

पूजा विधि
देवशयनी एकादशी के दिन प्रातः घर व मंदिर को स्वच्छ करने के उपरांत गंगाजल से स्नान करें। व्रत का संकल्प लें व भगवान विष्णु मां तुलसी का स्मरण करें। इसके बाद पीले रंग का आसन बिछाकर उस पर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें और भगवान विष्णु को रोली, कुमकुम, धूप, दीप, पीले फूल अर्पित करें। भगवान विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। घी के दीपक से आरती करें। पीली वस्तुओं का भोग अर्पित करें। भगवान विष्णु की स्तुति इस मंत्र का जाप करें…

‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।
‘ एकादशी के दिन विधिपूर्वक फलाहार कर उपवाव रखें व अन्न वस्त्र दान आदि के बाद उपवास का पारण कर सकते हैं।

कई व्यक्तियों के मस्तिष्क में यह सवाल अवश्य आता होगा कि देव शयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में क्यों जाते हैं?
इस परिपेक्ष में अनेक कथाएं हमारे पुराणों में लिखी गई है जिसमें से एक से मैं आपको अवगत कराना चाहूंगा
राजा बलि को दिया वरदान
वामन पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। और राजा बलि में अहंकार भर गया। राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्रदेव और अन्य देवता घबराकर भगवान विष्णु की शरण में गए और उनसे मदद करने की प्रार्थना की। देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।
(क्योंकि राजा बलि खुद को महादानी व सत्यवादी मानते थे।) वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। पहले पग में पृथ्वी व दूसरे पग में आकाश नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं था तो राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा प्रभु तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें। भगवान वामन ने ऐसा ही किया। इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई और वहीं विष्णु भगवान, राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया। बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान विष्णु पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के पाताल जाने के उपरांत सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए। अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी। बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया। पाताल से विदा लेते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को ही चातुर मास कहा जाता है

“हरिशयनी एकादशी एवं तुलसी रोपण निर्णय “
दिनांक 10 जुलाई 2022 मिथुनार्क 26 गते रविवार को हरि(देव)शयनी एकादशी है । इसी दिन तुलसी रोपण किया जाता है जिसका स्पष्ट निर्देश है परन्तु कुछ संचार माध्यमों द्वारा रविवार का भ्रम फैलाया जा रहा है । रविवार को केवल तुलसी का तोड़ना निषिद्ध है ।अतः 10 जुलाई रविवार को निःसंकोच तुलसी रोपण व पूजन करें ।

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Pahadi Bhula

Author has been into the media industry since 2012 and has been a supporter of free speech, in the world of digitization its really hard to find out fake news among the truth and we aim to bring the truth to the world.