उत्तराखंड भू-कानून के लिए गठित समिति की रिपोर्ट तैयार, जानिए क्या हो सकते हैं बड़े बदलाव।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा 6 अक्टूबर 2018 को देहरादून में देशभर के उद्योगपतियों को इंवेस्टर समिट के लिए बुलाकर ऐलान किया था कि वह राज्य में ऐसा भूमि कानून संशोधन लायेगी जिससे राज्य में उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा सके। इसी घोषणा के अनुपालन में सरकार ने 6 दिसंबर 2018 को उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950; अनुकलन एवं उपरांतरण आदेश 2001;संशोधन अध्यादेश.2018 को विधानसभा में रखा था। इसे 8 दिसंबर को पास कर राज्यपाल की मंजूरी के लिये भेजा गया था। राज्यपाल की मंजूरी के बाद इस अध्यादेश ने नये भूमि कानून का रूप लेकर पहाड़ों में जमीनों की खरीद फरोख्त का रास्ता खोल दिया गया था। इस संशोधन के अनुसार पहाड़ में किसी भी कृषि भूमि को कोई भी कितनी भी मात्रा में खरीद सकता है। पहले इस अधिनियम की धारा.154 के अनुसार कोई भी कृषक 12.5 एकड़ यानि 260 नाली जमीन अपने पास रख सकता था। इससे अधिक जमीन पर सीलिंग थी। नये संशोधन में इस अधिनियम की धारा 154 ; धारा4 धारा 3 में बदलाव कर दिया गया है। नये संशोधन में धारा 154 में उपधारा 2 जोड़ दी गई थी। अब इसके लिये कृषक होने की बाध्यता समाप्त कर दी गयी थी। इसके साथ ही 12.5 एकड़ की बाध्यता को भी समाप्त कर दिया गया। अब कोई भी व्यक्ति किसी भी उद्योग के प्रयोजन के लिये कितनी भी जमीन खरीद सकता है। इतना ही नहीं नये संशोधन में अधिनियम की धारा. 143 के प्रावधान को भी समाप्त कर दिया गया। पहले इस अधिनियम के अनुसार कृषि भूमि को अन्य उपयोग में बदलने के लिये राजस्व विभाग से अनुमति जरूरी थी। अब इस संशोधन के माध्यम से इस धारा को 143 क धारा में परिवर्तित कर दिया गया था जिसका राज्य भर में शोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक जमकर विरोध और आंदोलन भी किए गए।मामले की गंभीरता को देखते हुए इस पर समिति गठित करने का निर्णय लिया गया था ‌।

उत्तराखंड में उद्योगों की स्थापना के लिए बाहरी लोगों के बेतहाशा जमीन खरीदने पर रोक लग सकती है। भू कानून को लेकर गठित समिति ने अपने मसौदे में बाहरियों को 12.5 एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं बेचने की पैरवी की है।

समिति ने ड्राफ्ट में हिमाचल की तर्ज पर उद्योगों को उनकी जरूरत के हिसाब भूमि उपलब्ध कराने की सिफारिश की है। साथ ही अन्य प्रायोजनों के लिए तय सीमा से अधिक भूमि लीज पर देने पर सहमति जताई है। समिति का मानना है कि स्थानीय लोगों का भूमि पर मालिकाना हक बना रहना चाहिए। राज्य अतिथि गृह बीजापुर में उत्तराखंड भू-कानून के अध्ययन व परीक्षण के लिए गठित समिति की शुक्रवार को करीब दो घंटे चली बैठक में भू-कानून में सुधार संबंधी तमाम बिंदुओं पर चर्चा की गई।



सूत्रों के अनुसार समिति के ज्यादातर सदस्य इस बात पर सहमत थे कि राज्य में निवेश को बढ़ावा देने, उद्योग व अन्य विकास कार्यों के लिए भूमि की आवश्यकता को ध्यान में रख कानून में संशोधन करने होंगे। साथ ही भूमि की खरीद-फरोख्त को रोकने के इंतजाम किए जाएं, पर अंतिम मुहर नहीं लग पाई। समिति अब 23 अगस्त को बैठक के बाद अपनी फाइनल रिपोर्ट तय करेगी और सरकार को सौंपेगी। अध्यक्ष सुभाष कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में रिटायर आईएएस अरुण कुमार ढौंडियाल, बीएस गर्ब्याल, सदस्य अजेंद्र अजय, सचिव राजस्व दीपेंद्र कुमार चौधरी, प्रभारी उप राजस्व आयुक्त देवानंद मौजूद रहे।

ये हो सकते हैं बड़े बदलाव –
– वर्ष 2018 में संशोधन से भूमि क्रय संबंधी अधिनियम में जोड़ी गई उपधारा 143-क और धारा 154 (2) समाप्त की जा सकती है।

– उद्योगों को जमीन आवंटित करने का अधिकार जिलाधिकारियों को देने के फैसले को भी निरस्त किया जा सकता है।

– उद्योगों को जमीन खरीद में जो छूट दी गई थी, उसको भी निरस्त किया जा सकता है।

– उद्योग के नाम पर ली गई जमीन का उपयोग बदलने पर जमीन सरकारी कब्जे में लिया जा सकता है।

समिति की सिफारिशें
1. 12.50 एकड़ की सीमा से अधिक भूमि खरीदने की छूट खत्म हो।

2. जिलाधिकारी को भूमि खरीद का अधिकार न दिया जाए।

3. भूमि के बीच में किसी अन्य व्यक्ति भूमि होने पर रास्ता रोक देने या मनमाने दाम वसूलने की प्रथा को रोकने के लिए समिति ने राइट टू की व्यवस्था हो।

4. हिमाचल की तर्ज पर उद्योगों को दी जाए जमीन। उद्योगों के लिए भू उपयोग परिवर्तन में कतई विलंब न हो।

5. अन्य प्रायोजनों के लिए लीज भी भूमि दी जाए । स्थानीय भूमिधर का मालिकाना हक बना रहे ताकि वह भूमिहीन न हो। उसे निरंतर आय प्राप्त होती रहे।

6. शहरों में मास्टर प्लान की जद में आने वाली कृषि भूमि को अकृषि भूमि में बदलने के लिए 29 अक्टूबर 2020 को जारी हुए शासनादेश को विलुप्त कर दिया जाए।

23 अगस्त को फाइनल ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा। मुख्यमंत्री से समय लेकर मसौदा उन्हें सौंप दिया जाएगा।

Himfla
Ad