भारत और ओमान के बीच अभिलेखागार के क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमति

अभिलेखागार महानिदेशक श्री अरुण सिंघल के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई), नई दिल्ली के एक प्रतिनिधिमंडल ने ओमान के नेशनल रिकॉर्ड्स एंड आरकाइव्ज अथॉरिटी (एनआरएए) का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल में उप-निदेशक डॉ. संजय गर्ग और आरकाइविस्ट सुश्री सदफ फातिमा शामिल थीं। यह दौरा 21-22 फरवरी, 2024 को किया गया। दौरे का उद्देश्य था, पुरालेख क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग के क्षेत्रों का पता लगाना।

प्रतिनिधिमंडल को विभिन्न अनुभागों एवं प्रभागों का भ्रमण कराया गया। इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणाली (ईडीआरएमएस) अनुभाग, माइक्रोफिल्म विभाग, निजी रिकॉर्ड अनुभाग, रिकॉर्ड विभाग तक पहुंच, इलेक्ट्रॉनिक संग्रह और संरक्षण अनुभाग सहित एनआरएए के विभिन्न प्रभागों के प्रभारियों द्वारा प्रतिनिधिमंडल को विशेष प्रस्तुतियां दी गईं। प्रतिनिधिमंडल ने अभिलेखों की स्थायी प्रदर्शनी और डॉक्यूमेंट डिस्ट्रक्शन लैब का भी दौरा किया।

एनआरएए के अध्यक्ष डॉ. हम्द मोहम्मद अल-ज़ौयानी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में श्री अरुण सिंघल ने भारत और ओमान के बीच ऐतिहासिक संबंधों पर चर्चा की और डॉ. हम्द मोहम्मद अल-ज़ौयानी को राष्ट्रीय अभिलेखागार में ओमान से संबंधित बड़ी संख्या में रिकॉर्ड की मौजूदगी के बारे में भी जानकारी दी। सद्भावना व्यक्त करते हुए श्री सिंघल ने ओमान से संबंधित 70 चुनिंदा दस्तावेजों की एक सूची सौंपी, जो भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) में उपलब्ध हैं। ये दस्तावेज़ 1793 से 1953 तक की अवधि को कवर करते हैं और कई विषयों से संबंधित हैं। सूची के साथ, रिकॉर्ड की 523 पृष्ठों की प्रतियां भी अध्यक्ष, एनआरएए को सौंपी गईं, जिसमें कई महत्वपूर्ण विषय शामिल थे, जैसे-

  • ओमानी ध्वज का लाल से सफेद रंग में परिवर्तन (1868);
  • सुल्तान सैय्यद तुर्की की मृत्यु (1888) के बाद ओमान के शासक के रूप में सैय्यद फैसल बिन तुर्की का उत्तराधिकार;
  • मस्कट और ओमान के सुल्तान की भारत में वायसराय के साथ मुलाकात (1937); और
  • मस्कट में भारत गणराज्य और मस्कट व ओमान के सुल्तान के बीच मैत्री, वाणिज्य और नौवहन संधि, जिस पर 15 मार्च, 1953 को हस्ताक्षर किए गए (अंग्रेजी, हिंदी और अरबी संस्करण)।

इसके अलावा, दोनों देशों के बीच तीन महत्वपूर्ण संधियों के प्रतिकृति प्रिंट भी एनआरएए को उपहार में दिए गए। वे थे-

1. ब्रिटिशकालीन भारत सरकार और मस्कट के सुल्तान के बीच संधि (अरबी और अंग्रेजी में), दिनांक पांच अप्रैल, 1865; और

2. मस्कट के इमाम के साथ दो संधियां हुईं: पहली संधि मेहदी अली खान द्वारादिनांक 12 अक्टूबर,1798 को और दूसरी सर जॉन मैल्कम द्वाराफारस के दरबार में भारत के गवर्नर जनरल के दूत के रूप मेंदिनांक 18 जनवरी,1800 को।

बैठक में एनआरएए अध्यक्ष की सलाहकार सुश्री तमिमा अल-महरौकी, दस्तावेज़ प्रबंधन के लिए सहायक महानिदेशक सुश्री तैयबा मोहम्मद अल-वहैबी, संगठन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग विभाग के निदेशक श्री हमीद खलीफा सईद अल-सौली तथा संगठन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग विभाग की सहायक निदेशक राया अमूर अल-हाजरी भी उपस्थित थे।

एनएआई के महानिदेशक और एनआरएए के अध्यक्ष ने दोनों देशों के बीच संस्थागत सहयोग को औपचारिक बनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। चर्चा के बाद, सहयोग के कार्यकारी कार्यक्रम (ईपीसी) के मसौदे को अंतिम रूप दिया गया, जिसे अब दोनों पक्षों के सक्षम अधिकारियों द्वारा अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाएगा तथा निकट भविष्य में उस पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर किए जाएंगे।

कुछ गतिविधियां जिन पर सहमति हुई है और प्रस्तावित ईपीसी में शामिल हैं, उनमें शामिल हैं:

  • भारत और ओमान के बीच ऐतिहासिक संबंधों पर प्रकाश डालने वाले एक सम्मेलन के साथ-साथ दोनों अभिलेखागारों से संकलित अभिलेखीय सामग्रियों पर आधारित एक संयुक्त प्रदर्शनी का आयोजन करना;
  • दोनों संग्रहों को समृद्ध करने के लिए पारस्परिक हित रखने वाले दस्तावेज़ों की डिजिटल प्रतियों का आदान-प्रदान करना।
  • दोनों संस्थानों के उत्कृष्ट व्यवहारों पर ज्ञान साझा करने के लिए डिजिटलीकरण और संरक्षण के क्षेत्र में विशेषज्ञों को शामिल करते हुए विनिमय कार्यक्रम के लिए एक रूपरेखा की सुविधा प्रदान करना; और
  • दोनों अभिलेखागारों से संग्रहित अभिलेखीय सामग्रियों के आधार पर एक संयुक्त प्रकाशन लाना।

प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय प्रवासियों के प्रतिनिधियों से भी बातचीत की, जो कई पीढ़ियों से ओमान के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं और जिनमें से कई के पास समृद्ध निजी अभिलेखागार हैं। एनएआई के महानिदेशक ने भारतीय प्रवासी के इन सदस्यों को अपने पास मौजूद अभिलेखीय संपदा के भौतिक संरक्षण का ध्यान रखने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच साझा इतिहास के एक प्रामाणिक स्रोत के रूप में कार्य करता है। उन्होंने अपने दस्तावेजों के संरक्षण के साथ-साथ उनके डिजिटलीकरण में एनएआई की तकनीकी मदद की भी पेशकश की, ताकि मूल्यवान जानकारी भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित रहे।

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Pahadi Bhula

Author has been into the media industry since 2012 and has been a supporter of free speech, in the world of digitization its really hard to find out fake news among the truth and we aim to bring the truth to the world.