देश के चौदहवें उपराष्ट्रपति बने जगदीप धनखड़,जानिए किसान परिवार वकालत, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उपराष्ट्रपति तक का सफर।

उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके हैं गए हैं। एनडीए समर्थित उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति का चुनाव बड़े अंतर से जीत लिया है । धनखड़ को में 528 वोट मिले। वहीं, प्रतिद्वंद्वी विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को कुल 182 वोट मिले। कुल 710 वैध वोटों में जीत के लिए 356 वोट की मिलने जरूरी थे।

जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझनू जिले के किठाना गांव में हुआ था। पिता का नाम गोकल चंद धनखड़ और मां का नाम केसरी देवी धनखड़ है। जगदीप अपने माता- पिता के चार बच्चों में दूसरे नंबर के बेटे थे। शुरुआती पढ़ाई गांव किठाना के ही सरकारी माध्यमिक विद्यालय से हुई। गांव से पांचवीं तक की पढ़ाई के बाद उनका दाखिला गरधाना के सरकारी मिडिल स्कूल में हुआ। इसके बाद उन्होंने के सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ में भी पढ़ाई की।


12वीं के बाद उन्होंने भौतिकी में स्नातक की डिग्री हासिल की । इसके बाद राजस्थान विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। 12वीं के बाद धनखड़ का चयन आईआईटी और फिर एनडीए के लिए भी हुआ था, लेकिन नहीं गए। स्नातक के बाद उन्होंने देश की सबसे बड़ी सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास कर ली थी। हालांकि, आईएएस बनने की बजाय उन्होंने वकालत का पेशा चुना। उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत भी राजस्थान हाईकोर्ट से की थी। वे राजस्थान बार काउसिंल के चेयरमैन भी रहे थे।

धनखड़ का राजनीतिक सफर
जनता दल से पहली बार चुनाव लड़े, पहली बार सांसद चुने जाते ही मंत्री बन गए
धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी। धनखड़ 1989 में झुंझनुं से सांसद बने थे। पहली बार सांसद चुने जाने पर ही उन्हें बड़ा इनाम मिला। 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया था। हालांकि जब 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया तो वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और अजमेर के किशनगढ से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1993 में चुनाव लड़ा और विधायक बने। 2003 में उनका कांग्रेस से मोहभंग हुआ और वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। 2019 में जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था।

जब 14 साल के इकलौते बेटे की मौत ने धनखड़ झकझोर दिया।
धनखड़ की शादी 1979 में सुदेश धनखड़ के साथ हुई। दोनों के दो बच्चे हुए। बेटे का नाम दीपक धनखड़ और बेटी का नाम कामना धनखड़ रखा। लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन नहीं रही। 1994 में जब दीपक 14 साल का था, तब उसे ब्रेन हेमरेज हो गया। इलाज के लिए दिल्ली भी लाए, लेकिन बेटा बच नहीं पाया। बेटे की मौत ने जगदीप को पूरी तरह से तोड़ दिया। हालांकि, किसी तरह उन्होंने खुद को संभाला।
बेटे की मौत का गम आज भी नहीं भुला पाए धनखड़
महज 14 साल के बेटे के खोने का गम आज भी धनखड़ भूल नहीं पाए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो धनखड़ बेटे को याद करके आज भी रोने लगते हैं।

Himfla
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