प्रेरणादायक: परम्परागत ऐपण कला को संरक्षित कर सहेजने का काम कर रही हैं,असगोली द्वाराहाट अल्मोड़ा की बेटी प्रीति अधिकारी।

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देवभूमि उत्तराखंड जोकि अपनी विशिष्ट संस्कृति एंव कलाकृतियों हेतु विश्व भर में प्रसिद्व है।
इन्ही संस्कृतियो में ऐपण (AIPAN) भी एक प्रमुख कला है। जिसका प्रयोग कुमाउनी घरों में कुछ खास अवसरों पर चौखटों, दिवरो आँगन व मंदिरो में किया जाता है जिनका अपना एक धार्मिक महत्व है।
यह प्रकृतिक रंगों से बनाया जाता है जैसे गेरू ( जोकि एक प्रकार की लाल मिट्टी जो पहाड़ो में पायी जाती है) और चावल के आटे में पानी मिलकर उसे थोड़ा पतला बनाया जाता है।
कुमाऊं की इस अनमोल धरोहर को सजाने, सँवारने, व सहेजने का पूरा श्रेय यहाँ की महिलाओंं को जाता है इस कला से प्रभावित अन्य लोग भी इस कला को पसंद करने लगे है। कामकाजी समय में भी इस लोककला को सहेजने का कार्य कर रही है असगोली द्वाराहाट अल्मोड़ा निवासी प्रीति अधिकारी,


प्रीति अधिकारी।

प्रीति वर्तमान में अल्मोड़ा से एम ए की पढ़ाई भी कर रही हैं एम.ए की पढ़ाई के साथ साथ पारम्परिक लोक कला ऐपण को संरक्षित करने का काम कर रही हैं। प्रीती अधिकारी पारम्परिक ऐपण से आकर्षक चित्र, दीवार पेंटिंग्स, धार्मिक कार्यों के लिए चौकियां,ऐपण राखियां सहित हस्त निर्मित राखियों का भी निर्माण कर रही हैं। प्रीती अधिकारी तेजी से बड़ रही आधुनिकता के इस दौर में भी अपनी पारंपरिक लोककला को सहेज रही है, और साथ अपने समय का सकारात्मक उपयोग कर अपने हुनर को भी प्रदर्शन कर रही है। प्रीति अधिकारी द्वारा ऐपण निर्मित सामग्रियों को आप इंस्टाग्राम पर (aipanartwork2022) पर मैसैज कर मंगा सकते हैं।

प्रीति अधिकारी द्वारा निर्मित ऐपण राखियां।

लोककला ऐपण में समय के साथ आये हैं बदलाव।
ऐपण उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा प्रचलित एक पारंपरिक लोक कला है जो विशेष अवसरों और अनुष्ठानों पर घर की दीवारों पूजा स्थलों पर उकेरी जाती हैं और शुभ मानी जाती हैं।
माना जाता हैकि ऐपण दैवीय शक्ति का आह्वान करता है जो सौभाग्य लाता है और बुराई को रोकता है। गेरू या लाल मिट्टी के ऊपर चावल के आटे से बने सफेद पेस्ट से कलाकृति बनाई जाती है। बदलते दौर में गेरू के बदले लाल पेंट और बिस्वार (चावल के आटे) के बदले सफेद पेंट का प्रयोग भी किया जाने लगा है।ऐपण अक्सर पूजा कक्षों के फर्श और दीवारों और घरों के प्रवेश द्वार पर बनाये जाते है।ऐपण बनाने में काफी मेहनत बारिकी और एकाग्रता की आवश्यकता होती है,अधिक कामकाजी दौर में यह कला अब धीरे धीरे पीछे छूट रही है।ऐसे में प्रीति अधिकारी जैसी तमाम मातृशक्ति इस लोककला को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं।

प्रीति अधिकारी द्वारा ऐपण कला से बनाई गई सामग्री ।

संगम न्यूज से खास बातचीत में प्रीति अधिकारी ने बताया कि उनके घरों में अक्सर जब भी किसी सुअवसर पर उनकी माताजी,ताईजी एवं अन्य परिवारजन ऐपण करते थे, जिससे प्रभावित होकर उन्हें यह कार्य रूचिकर लगने लगा, और कोरोना लाकडाउन के खाली समय में उन्होंने यह कार्य शुरू किया जिसमें प्रीति अधिकारी ने बताया कि वो इस कार्य को करने से काफी खुश हैं और उनके परिजनों द्वारा उनको कार्य के प्रति सराहना मिलती, उन्होंने बताया कि वो ऐपण कला के क्षेत्र में आगे और भी अभिनव प्रयोग कर इसे आजीविका से जोड़ने का प्रयास करेंगी और आत्मनिर्भर भारत की तरफ अग्रसर होगी ।
टीम संगम न्यूज परंपरागत लोककला को सहेजने संरक्षित करने की दिशा में प्रीति अधिकारी द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

Himfla
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