एक्सक्लूसिव: पहाड़ की आवाज पहुँची देश विदेश, बस उत्तराखंड सरकार ना सुन पाई

कवि काण्डपाल

देश विदेशों तक जिसकी आवाज गूंजती है,उसकी आवाजें नहीं सुन पा रहा है प्रशासन शोशल मीडिया पर जाहिर की पीड़ा।
आवाजों की दुनिया में एक एसी आवाज जिसके न केवल स्वदेशी ही बल्कि विदेशी भी मुरीद हैं।पहाड़ की वो आवाज नैनीताल के ज्योलिकोट चोपड़ा गांव निवासी पंकज जीना की है। आजकल वो अपने घर परिवार गांव के संकट की पीड़ा को शोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। लेकिन शासन प्रशासन उनकी एक भी नहीं सुन पा रहा है। पंकज जीना आजकल बनारस में रेडियो के माध्यम से लोगों को कहानियां सुनाते हैं और उनकी आवाज के लाखों लोग दिवाने है न समय समय पर उनकी कहानियों में पहाड़, उत्तराखंड, यहां के रहन सहन खान पान, संस्कृति आदि का जिक्र भी अक्सर आते रहता है।
दरअसल मामला उनके गांव जहां उनका परिवार खतरे के साये में दिन रात काट रहा है नैनीताल जिले के चोपड़ा गांव है।जीना बताते हैं कि उनके घर के आस पास लम्बे समय से एक चट्टान अब टूटे तब टूटे की कगार पर है पहाड़ों पर लगातार हो रही बारिश से जिसका खतरा और भी बढ़ गया है। जिससे वो काफी परेशान हैं वो बताते हैं विगत कई सालों से वो इस संकट से निजात दिलाने हेतु जिले स्तर से लेकर राज्य स्तर तक आपनी समस्या बता चुके हैं जिसका की आजतक कोई समाधान नहीं हो पाया है। पंकज जीना अपने फेसबुक पर अपनी समस्या बताते हुए लिखा है-

” शायद हमारा जीवन, बस विपदाओं के लिए है।

कल जब पहली बार, अपने गाँव की समस्या के बारे में, सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी, तो पहाड़ और मैदान के बहुत से दोस्तों ने, हमारा साथ दिया।वह बात अलग है कि, कुछ लोगों को यह लगा कि नेता इसमें क्या ही कर सकते हैं, तो इस पर बस इतना ही कहूँगा, खाई क्ये जाना भूखे बात??


मतलब जिसका पेट भरा हो,वह भूख को नहीं समझ सकता।जिसके द्वार परेशानी आती है, वही उसका दर्द समझता है।पिछले साल अक्टूबर में जब अतिवृष्टि आयी, उन दिनों हमारे घर के, ठीक टॉप की धार वाले कुछ बोल्डर, जो बरसों से, वहीं रुके हुए थे, नीचे खिसकने लगे।उन बोल्डरों ने लगभग 1 किलोमीटर नीचे आकर, रास्ते के हर पेड़ और हर चीज़ का नामोनिशान मिटा दिया।गोल्ज्यू की कृपा हुई कि, वह बोल्डर घर से 1 किलोमीटर ऊपर रुक गया।दो बोल्डर अब भी टॉप पर हैं, जो धीरे धीरे खिसक रहे हैं।उस वक़्त गाँव वालों का यही कहना था कि, इन बड़े बोल्डरों को, भू वैज्ञानिकों की देख रेख में तुड़वा दीजिए, जिससे हमारी समस्या ख़त्म हो जाये।विभागीय अधिकारी बातों को टालते चले गए। एक तो हमारे गाँव वाले बेचारे सीधेपन में ही रहते हैं,अब जब एक साल बाद फिर वह पत्थर नीचे आ गए हैं, तो अधिकारियों का कहना है कि,इस पर विचार किया जाएगा।अधिकतर दफ़्तरों में,मेरे गाँव के लोग ज्ञापन लिए दौड़ रहे हैं कि साहेब हमारे गाँव को बचा लो, नहीं तो आपदा आ जाएगी, हमारा नामोनिशान मिट जाएगा।जो जनप्रतिनिधियों का चुनाव से पहले,हमारे घर आना जाना हो गया था, उनके साथ काम करने वाले कार्यकर्ता कह रहे हैं,हमारे जनप्रतिनिधियों को अवगत कराइये।अजीब बात है, चुनाव से पहले जो वादे थे, अब उसके लिए ज्ञापन देना पड़ रहा है।स्वतः संज्ञान लेना तो बहुत दूर की बात, सब जानते हुए भी यह लोग, आँख बंद करके बैठे हैं।मेरे पत्रकार दोस्तों, मुझे सुनने पढ़ने वाले, मेरे परिवार, आपसे आज मैं, हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ, मेरे गाँव को बचा लीजिए🙏मेरे इष्टों के स्थान, मेरे गोल्ज्यू के मन्दिर और मेरे अपनों को बचा लीजिए🙏
इन सोए हुए जनसेवकों को जगा दीजिए, जो हैं तो जनता की सेवा के लिए लेकिन अब यह स्वयं को, गोल्ज्यू से भी ऊपर समझ बैठे हैं।अब मन हार रहा है,
हे न्यायकारी गोलू देवता, ध्यान धरिये तू🙏

मुखर “

इस पीड़ा को पढ़कर उनके अनेकों फैंस की तरह तरह प्रतिक्रियाएं इस मामले पर देकर सरकार और प्रशासन के रवैए पर सवाल खड़े कर रहीं हैं। लेकिन इस मामले में शासन प्रशासन के कानों में जूं नहीं रेंगी। जहां एक ओर सरकार अपनी प्रतिभाओं को संरक्षण देकर बड़े बड़े दावे करती है वहीं एक प्रतिभावान आवाज पंकज जीना की इस पीड़ा से जहां सरकार के तमाम दावों पर प्रश्नचिन्ह लगाती है वहीं उनके लाखों चाहने वाले देश विदेशों से राज्य और जिले के शासन प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे ।

Himfla
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Pahadi Bhula

Author has been into the media industry since 2012 and has been a supporter of free speech, in the world of digitization its really hard to find out fake news among the truth and we aim to bring the truth to the world.